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रात मैने सपने में देखा,
सब झोपडियां महल हो गईं।
पानी की वो पतली नालियां,
जाने कैसे नहर हो गईं।
मेरा छोटा गांव भी देखा,
एक बडा सा शहर हो गया।
गांव के पोखर का ही केकडा,
बहुत बडा सा मगर हो गया।
गांव के चलते-फिरते सब पशु,
घर-घर करते यंत्र हो गये।
आकर मैने शहर मे पाया,
मेरे सारे मंत्र खो गये।
गांव का नीला आसमान अब,
काला-काला क्यों दिखता है?
वहां तो सब कुछ साफ़ साफ़ था,
यहां पर धुंधला क्यों दिखता है?
रामू काका मेरे पड़ोसी,
भूल गये अब मिलना-जुलना|
रामलाल बन गये यहाँ अब,
दोनों की करता हूँ तुलना|
मोटर की पीं-पीं के भीतर,
कोयल की वो कूक खो गई|
लगता है कि प्रकृति कि देवी,
यहाँ पर आकर मूक हो गई|
जाने कितनी देर देखता,
और अधिक मैं इस सपने को|
मुर्गा बोला आँख खुली,
क्या भूल गया था मैं अपने को?
गांव हमारा गांव ही अच्छा,
हे ईश्वर! यह शहर न हो,
सपने सच्चे कब होते हैं,
मेरा सपना सच न हो||
तेज पाल सिंह
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